हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचयहिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
Spread the love

अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं, हार का निर्वासन नहीं, बल्कि युद्ध की घोषणा हैं. वे भाजपा के सह-संस्थापकों व वरिष्ठ नेताओं में से एक थे, साथ ही तीन बार देश के प्रधानमंत्री भी बने. लेकिन इसके साथ ही वे एक प्रसिद्ध कवि और लेखक भी थे. उन्होंने युवावस्था में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी, ”हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय”, इससे पता चलता है, कि बचपन से ही उनका रुझान कविताओं और देश हित के प्रति था. ये वही कविता है, जिसे कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में सुनाकर रामायण की आड़ में हिंदुत्व और हिंदुओं पर हमला बोलने वालों को आड़े हाथों लिया था.

काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण अटल बिहारी वाजपेयी को विरासत में मिले थे. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे, जो ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे. पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में भी कविताएं बहती थीं. राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति वैयक्तिक संवेदनशीलता उनके भाषणों और रचनाओं के माध्यम से समय-समय पर प्रकट होती रही है. संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियां, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि जैसे अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूतियों की वजह उनके काव्य को अभिव्यक्ति मिली.

अटल बिहारी वाजपेयी, भारतीय इतिहास के सबसे सम्माननीय नेताओं में से एक हैं, जिनकी किसी बात का कोई भी तोड़ कभी नहीं मिला. उनकी कविताओं में एक राजनेता भी था और मासूम पुरुष भी, जिसने अपने समय, बुराईयों और गलत लोगों से कई सवाल किए. वे जैसी चाहते थे, दुनिया वैसी नहीं थी, इसका उदाहरण उनकी कविताओं में पढ़ने को मिलता है. उनकी कविताएं उनके व्यक्तित्व की गहराई, देश से प्रति प्रेम और उनकी अटल आशा को प्रतिबिंबित करती हैं. अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया, जिसने राजनीति से अलग देश या देश के बाहर के लोगों से भी उनका एक ऐसा संबंध स्थापित किया, जो सामूहिक भावनाओं की गहराई तक पहुंचा.

अटल बिहारी वाजपेयी एक असाधारण राजनीतिज्ञ थे, जिनकी कविताएं भाषा और राजनीति की सीमाओं को पार करते हुए आगे बढ़ती हैं. उनके शब्दों में इंसानी मन को छूने, कल्पनाओं को गढ़ने और भावनाओं को जगाने की शक्ति है. उनकी सभी कविताएं अस्तित्व की गहराईयों को खोजने के लिए प्रेरित करती हैं और साथ ही करुणा, उम्मीद और संघर्ष का भाव पैदा करती हैं. अटल बिहारी वाजपेयी ने न केवल भारतीय राजनीति में अपनी महानता दिखाई, बल्कि उन्होंने भारतीय साहित्य को भी अमर बनाया. हिंदूस्तान के मशहूर गज़ल गायक जगजीत सिंह ने अटल जी की चुनिंदा कविताओं को संगीतबद्ध करके एक एल्बम भी निकाला, जिसे लोगों ने ख़ासा पसंद किया. इस एल्बम के माध्यम से अटल जी की कविताएं उन लोगों के बीच भी पहुंची, जिनका कविता, कहानियों या साहित्य की दुनिया से कोई जुड़ाव ही नहीं था. ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है.

आइए पढ़तें हैं, अटल बिहारी वाजपेयी की वे चुनिंद कविताएं, जिन्हें हमेशा पढ़ा जाना ज़रूरी है. ये कविताएं उनके कविता-संग्रह ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ से ली गई हैं, जिसे ‘किताब घर’ द्वारा प्रकाशित किया गया है.

परिचय
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार.
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार.
रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास.
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधार.
फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं.
यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर.
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पी कर.
अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैंने वह आग प्रखर.
हो जाती दुनिया भस्मसात्, जिसको पल भर में ही छूकर.
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन.
मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इस में कुछ संशय.
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान.
मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान.
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर.
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर.
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय.
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश.
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर.
विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर.
यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर.
गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ने खाई ठोकर.
दो आंसू शेष बचा पाया जब-जब मानव सब कुछ खोकर.
मैं आया तभी द्रवित हो कर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर.
भूला-भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जग कर.
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर.
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय.
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल.
मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अंतस्थल वर विशाल.
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार.
अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार.
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट.
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार.
अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाजार?
क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?
जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर.
वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं.
यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम.
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए?
कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय.
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मैं एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दू समाज.
मेरा-इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज.
इससे मैंने पाया तन-मन, इससे मैंने पाया जीवन.
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण.
मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक.
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय.
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

मृत्यु एक अटल सत्य है, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी का जाना पूरे देश के लिए शोक का क्षण था. उनके जैसा पुरुष सदियों में एक बार पैदा होते हैं. उनकी कविताएं आज भी उतनी ही सार्थक हैं, जितनी की उस समय में रहीं, जब लिखी गईं. उनके जाने से समावेशी राजनीति के एक युग का अंत हो गया. आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके अचल-अटल विचार और अटल भाव राष्ट्र का मार्गदर्शन कर देश के प्रगति पथ को सदा आलोकित करते रहेंगे. वे अदृश्य रूप से राष्ट्र का हिस्सा सदैव बने रहेंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *