यह विषय कुछ लोगों को अटपटा सा लग रहा होगा लेकिन यह सच है। इस राष्ट्र और इसकी पुरातन संस्कृति के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाला सच्चा हिन्दू अवश्य चिंतित होगा। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दू संगठन ‘विश्व हिन्दू महासंघ’ की अन्तर्राष्ट्रीय कार्यसमिति एवं महासभा की बैठक का मुख्य मुद्दा भी यही था। 25, 26 एवं 27 अप्रैल, 2008 को पाटेश्वरी शांति पीठ, देवीपाटन में इस विषय पर व्यापक चर्चा भी हुई।
‘हिन्दू’ शब्द की यद्यपि तमाम व्याख्याएँ हुई हैं, लेकिन सामान्यतः हिमालय से समुद्र पर्यन्त विस्तृत भूभाग में जन्मी उपासना पद्धति के अनुयायी ही ‘हिन्दू’ नाम से सम्बोधित किये जाते रहे हैं, फिर वे चाहे सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हों, बौद्ध मत के हों अथवा जैन, सिख अथवा इस विस्तृत भूभाग में जन्मी किसी भी उपासना पद्धति के। इन सबका मूल सनातन धर्म ही रहा है।
यही नहीं, अगर हम संसार भर में फैली सभी प्राचीन जातियों और संस्कृतियों के मूल में जाएँ, तो केवल हिन्दू जाति के पुरालेखों में, इतिहासों में, पुराणों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख सुरक्षित है कि मानव सृष्टि और सभ्यता का प्रारम्भ हिमालय से कन्याकुमारी तक विस्तृत भूखण्ड में ही हुआ था। विभिन्न कालखण्डों में यहीं से निर्गमन कर मानव जाति ने नाना दिशाओं और देशों में अपने अस्तित्व बनाये।
देश, काल तथा जलवायु आदि के भेद के कारण उनकी भाषा, वेशभूषा, आचार-विचार में ही नहीं, अपितु उनके रंग और शारीरिक बनावट में भी परिवर्तन हो गया। किन्तु उनकी मौलिक एकता के बिखरे सूत्र आज भी प्रत्येक क्षेत्र की प्राचीन भाषा और संस्कृति में खोए नहीं जा सकते।
अर्थात हम हिन्दुओं की पुण्य भूमि ही सम्पूर्ण मानवता की जननी और धात्री रही है।
इस सबके बावजूद पिछले बारह सौ वर्षों से जो कुछ भी घटित हो रहा है, उससे विश्व की सबसे प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति और उसके अनुयायी क्यों चुप हैं? क्या उन्हें खतरा दिखाई नहीं दे रहा है? क्या हम हिन्दुओं की स्थिति उस शुतुरमुर्ग जैसी तो नहीं हो गई है जो शत्रु को देखकर अपनी आँखें बन्द कर लेता है?
अगर हिन्दुओं पर अत्याचार की चर्चा करें तो स्वामी विवेकानन्द का यह कथन ही सबकुछ समझने के लिए पर्याप्त है — “जब पहली बार हिन्दुस्थान पर मुगल आक्रमणकारियों ने हमला किया था, तब इस देश में हिन्दुओं की आबादी 60 करोड़ थी।”
लेकिन 1235 वर्षों के बाद यह देश सन 1947 में आजाद हुआ तो हिन्दुओं की कुल आबादी रह गई मात्र 30 करोड़ — अर्थात 1235 वर्षों में हिन्दुओं की आबादी आधी होना आखिर क्या दर्शाता है?
यह सच है कि धर्म बदलने पर राष्ट्रीयता भी बदल जाती है। यही कारण है कि कभी भारत का अंग रहे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश आज हमसे अलग होकर हमारे ही शत्रु बन गये हैं। आज सम्पूर्ण दुनिया से हिन्दुओं के सफाये का अभियान सा चल पड़ा है।
दुनिया में जहाँ कहीं भी उन पर अत्याचार हुआ, उन्होंने भारत अथवा नेपाल में ही शरण ली। लेकिन आज जो स्थिति भारत और नेपाल की है, उससे ढेर सारे प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक है।
भारत में तथाकथित तुष्टीकरण की नीति के कारण इस्लामी आतंकवाद चरम पर है। पूर्वोत्तर समेत इस देश के अनेकांत हिस्सों में चर्च द्वारा प्रायोजित आतंकवाद भी चरम पर है। आज भारत वामपंथी प्रवृत्तियों की चपेट में है।
1948 में कश्मीर के 1 लाख एकड़ भूमि पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया तो 1962 में 42 हजार एकड़ भूमि पर चीन द्वारा कब्जा कर लिया गया। 1990 में कश्मीर में 3.5 लाख हिन्दू निर्वासित कर दिये गये।
आज भी आतंकवाद, अलगाववाद एवं वामपंथी प्रवृत्तियों की चपेट में भारत अथवा नेपाल में हिन्दू ही आ रहा है। विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल पिछले एक दशक से माओवादी हिंसा से इतना पस्त हुआ कि अब उसके अस्तित्व पर ही खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
इस धरती के अन्दर जन्मी उपासना पद्धतियों के अनुयायियों ने कभी दुनिया में शान्ति, करुणा, मैत्री आदि का सन्देश देकर ‘जियो और जीने दो’ की प्रेरणा दी थी। आज पूरी दुनिया के अन्दर इस्लाम, ईसाइयत तथा वामपंथी प्रवृत्तियाँ इसका समूल नाश करने पर तुली हैं।
तिब्बत में बौद्ध संस्कृति को विनष्ट करने पर चीन तुला है। बांग्लादेश तथा मलेशिया में वहाँ की इस्लामी कट्टरपंथी सरकारें हिन्दुओं का सफाया करने पर तुली हैं। अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान से हिन्दुओं का सफाया पहले ही हो चुका है।
पूरी दुनिया के अन्दर जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहाँ बहुसंख्यक समुदाय, और जहाँ बहुसंख्यक हैं वहाँ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारों की कुनीतियों के कारण अल्पसंख्यक समुदाय हिन्दुओं का सफाया करने पर तुला है।
हम हिन्दुओं ने अगर इस खतरे को जानने और अपनी ताकत को पहचानने की कोशिश की होती तो यह दुर्दिन हमें नहीं देखना पड़ता।
आज भी संख्या के हिसाब से देखें तो हिन्दू, बौद्ध, जैन एवं सिख मिलकर पूरी दुनिया में लगभग 38.62% हैं, जो ईसाई (33%) और मुस्लिम (21%) से अधिक है।
लेकिन हम पूजा विधियों में बँटे होकर अपनी शक्ति का एहसास नहीं कर पा रहे हैं।
अगर हम हिन्दुओं को जीवित रहना है तो हमें जागृत होना ही पड़ेगा — अपने अस्तित्व के लिए खतरा बने तत्वों और अपनी ताकत को पहचानना पड़ेगा।
नेपाल के अस्तित्व पर आया खतरा मात्र एक राष्ट्र का खतरा नहीं है, यह एक संस्कृति को विनष्ट करने की साजिश है। नेपाल मात्र एक देश नहीं, एक विरासत है। जब भी संस्कृति और विरासत के खतरे को नजरअंदाज किया जायेगा, तब जाति और परम्परा का इतिहास में नाम शेष के अतिरिक्त कुछ भी शेष रह पाना सन्देहास्पद ही रहेगा।
