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भारत को देवताओं की भूमि कहा जाता है. यहां के ग्रंथों और पुराणों में भगवान के अवतार की कथाएं यह प्रमाणित करती हैं कि भारतभूमि इतनी पावन है कि यहां देवता भी अवतार लेने को ललायित रहते हैं. आज तो इस सोने की चिड़िया को घर के ही दलालों ने नोंच डाला है पर इस देश का इतिहास हमेशा इसकी स्वर्ण गाथा गाता रहेगा. इस देश का पौराणिक इतिहास हमारे लिए विशेष महत्व रखता है. आज भारत वर्ष में महा शिवरात्रि का पावन पर्व है.

भगवान शिव को यूं तो प्रलय का देवता और काफी गुस्से वाला देव माना जाता है. लेकिन जिस तरह से नारियल बाहर से बेहद सख्त और अंदर से बेहद कोमल होता है उसी तरह शिव शंकर भी प्रलय के देवता के साथ भोले नाथ भी है. वह थोड़ी सी भक्ति से भी बहुत खुश हो जाते हैं और यही वजह है कि शिव सुर और असुर दोनों के लिए समान रूप से पूज्यनीय हैं.

शिव का अर्थ है कल्याण, शिव सबका कल्याण करने वाले हैं. महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है. माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था.

महाशिवरात्रि का महत्व : Importance of Maha Shivratri

शिवपुराण में वर्णित है कि शिवजी के निष्कल (निराकार) स्वरूप का प्रतीक ‘लिंग’ इसी पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था. इसी कारण यह तिथि ‘शिवरात्रि’ के नाम से विख्यात हो गई. यह दिन माता पार्वती और शिवजी के ब्याह की तिथि के रूप में भी पूजा जाता है.

माना जाता है जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेंद्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति व साम‌र्थ्य द्वारा निश्चल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है, वह वर्ष पर्यंत शिव-पूजन करने का संपूर्ण फल मात्र शिवरात्रि को तत्काल प्राप्त कर लेता है.

शिवरात्रि की पूजन विधि

महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है. इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है.

इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है. रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है. अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है.

शिवजी का प्रिय बेल

बेल (बिल्व) के पत्ते शिवजी को अत्यंत प्रिय हैं. शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है. एक बार उसे जंगल में देर हो गयी , तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया. जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची- वह सारी रात एक-एक कर पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता जाएगा. कथानुसार, बेलवृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था. शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख, शिव प्रसन्न हो उठे. जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था. शिव ने उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया. यह कथा बताती है कि शिवजी कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं.

आज शिवरात्रि के अवसर पर सच्चे दिल से शिवजी की भक्ति करने से सभी भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होगी.

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