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How Indian Rail got Toilet: भारतीय रेल में टॉयलेट की शुरुआत का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है. साल 1909 था. अखिल चंद्र सेन ने अपने रेल यात्रा की शुरुआत की और उनकी ट्रेन छूट गई. यहीं से पूरी कहानी बदली और भारतीय रेल के पैसेंजर कोच में टॉयलेट पहुंचा. जानिए, इसकी पूरी कहानी.

कभी सोचा है कि ट्रेन से लम्बी यात्रा कर रहे हैं और उसमें टॉयलेट ही न हो तो? एक दौर ऐसा भी था ट्रेनों के सामान्य कोच में टॉयलेट नहीं हुआ करते थे, लेकिन एक शख्स ऐसा भी था जो भारतीय ट्रेनों में ऐसी क्रांति लाया जिसने हर सफर करने वाले को राहत दी. उसका नाम था अखिल चंद्र सेन. अखिल चंद्र के साथ ऐसी घटना घटी जिसने भारतीय रेलों में टॉयलेट पहुंचा दिया. भारत में रेल की शुरुआत अप्रैल, 1853 में हुई. उस दौर में यात्री डिब्बों में टॉयलेट की सुविधा नहीं हुआ करती थी. लम्बी दूरी तय करना यात्रियों के लिए चुनौती हुआ करती थी.

भारतीय रेल में टॉयलेट पहुंचने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. साल 1909 था. अखिल चंद्र सेन ने अपने रेल यात्रा की शुरुआत की और उनकी ट्रेन छूट गई. यहीं से पूरी कहानी बदली और भारतीय रेल के पैसेंजर कोच में टॉयलेट पहुंचा. जानिए, इसकी पूरी कहानी.

कैसे शुरू हुई कहानी?

अखिल चंद्र सेन ने रेल से अपना सफर किया. उनके पेट में दर्द हुआ. ट्रेन पश्चिम बंगाल के अहमदपुर स्टेशन पर रुकी. सेन को शौच के लिए उतरना पड़ा. वो ट्रेन से उतरे ही थे कि ट्रेन ने चलने का संकेत दे दिया. गार्ड ने सीटी बजा दी और ट्रेन चल दी. अखिल चंद्र ट्रेन पकड़ने के लिए भागे, लेकिन ट्रेन अपनी रफ्तार बढ़ाती गई. नतीजा, दौड़ते-दौड़ते उनकी धोती खुल गई. संतुलन बिगड़ा और वो गिर गए. नतीजा, उनकी ट्रेन छूट गई. अखिल का गुस्सा सातवें आसमान पर था.

उन्होंने अपनी निराशा और गुस्से को एक पत्र में लिखा. अखिल चंद्र ने साहिबगंज मंडल रेलवे कार्यालय को लिखे पत्र में कड़े शब्दों में निंदा की. इस निंदा ने ब्रिटिश शासन के दौर के रेलवे पर ऐसा असर छोड़ा कि उन्हें ट्रेनों में टॉयलेट लगवाने के लिए सोचना पड़ा.

धमकी भरे लेटर में क्या-क्या लिखा?

रेलवे को लिखे पत्र में उन्होंने अपनी यात्रा की पूरी कहानी बताई. लिखा, कैसे उन्होंने गार्ड को इंतजार करने को कहा था, लेकिन वो इंतजार करना भूल गया और ट्रेन चल दी. ट्रेन को दौड़कर पकड़ने की कोशिश में लुंगी खुली और लोगों के सामने अपमानित करना पड़ा.

अपने पत्र में उन्होंने सख्त अंदाज में लिखा, अगर उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है तो इस घटना को अखबार में प्रकाशित करा देंगे. इस धमकीभरे लेटर में उन्होंने रेलवे के अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया. रेलवे ने मामले की जांच कराई और इस पूरी घटना को सच पाया. इसके बाद 80 किलोमीटर से अधिक लम्बी दूरी की ट्रेनों के जनरल कोच में टॉयलेट लगाए गए.

हालांकि, सामान्य और लोवर कोच में टॉयलेट पहुंचने में कई साल लगे, लेकिन आज भी इसका श्रेय अखिल चंद्र सेन को जाता है. इसके बाद रेल का सफर आरामदायक बन गया. शुरुआती दौर में ऐसे शौचालय बनाए गए जिनका मल सीधेतौर पर पटरियों पर गिर जाता था, बाद लेकिन भारतीय रेलवे ने इसे बेहतर बनाया और फ्लशिंग सिस्टम की शुरुआत की. बड़ा बदलाव तब आया जब 2010 के दशक में बायो-टॉयलेट की शुरुआत हुई.

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