Rambhadracharya Biograpghy: जगद्गुरु रामभद्राचार्य के जीवन की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है. बचपन में ही नेत्र ज्योति खोने वाले रामभद्राचार्य ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बलबूते वो मुकाम हासिल किया, जो अन्य संतों के लिए प्रेरणा बन गया.
जगदगुरु रामभद्राचार्य फिर सुर्खियों में हैं. बाल संत कहे जाने वाले अभिनव अरोड़ा को डांटने से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे के बयान का समर्थन करने को लेकर वो चर्चा में है. 74 साल के रामभद्राचार्य इससे पहले भी मुलायम कांशीराम और हनुमान चालीसा पर दिए अपने बयानों से चर्चा में रहे हैं. उन्हें बागेश्वर धाम धीरेंद्र शास्त्री के गुरु के तौर पर भी जाना जाता है.लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामभद्राचार्य का जन्म कहां हुआ, उनकी आंखों की रोशनी कैसे चली गई और कैसे वो इतने प्रकांड विद्वान बन गए.
सरयूपारी ब्राह्मण के घर जन्म
कम ही लोगों को मालूम है कि रामभद्राचार्य का जन्म यूपी के जौनपुर जिले में हुआ था. वो सरयूपारी ब्राह्मण थे और मकर संक्राति के दिन वर्ष 1950 में वो पैदा हुए थे. जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम गिरिधर मिश्रा था. उनके पिता का नाम शचि देवी और पिता का नाम राजदेव मिश्रा था.उनके दादा की चचेरी बहन मीरा बाई की अनन्य भक्त थी इसलिए उनका नाम गिरिधर रखा गया.
दो माह के थे, आंखों की रोशनी चली गई
रामभद्राचार्य स्वास्थ्य कारणों से दो महीने की उम्र में आंखों की रोशनी खो दी थी. आंखों में रोहे नाम की संक्रामक बीमारी हो गई. परिवार वाले उन्हें एक स्थानीय चिकित्सक के पास ले गए, जिन्होंने उनकी आंख में जो गर्म द्रव डाला, उससे उनकी आंखों की रोशनी चली गई. लखनऊ, सीतापुर से लेकर बांबे तक उनके इलाज के लिए भागदौड़ हुई, लेकिन उनकी नेत्र ज्योति वापस नहीं आ पाई. उनके पिता की मुंबई में नौकरी थी.
प्रतिभा के धनी
फिर पितामह के घर ही उन्होंने महाभारत, रामायण, सुखसागर, विश्रामसागर, ब्रजविलास,सुखसागर जैसे तमाम ग्रंथ सुनकर ही कंठस्थ कर लिए. चार साल की उम्र तक वो कविता पाठ करने लगे. आठ साल की उम्र में रामभद्राचार्य भागवत और रामकथा का भी पाठ करने लगे. रामभद्राचार्य को उनकी को पद्मविभूषण सम्मान भी मिला है. रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में एक रामभद्राचार्य भी थे. साथ ही चित्रकूट में रामभद्राचार्य में दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना उन्होंने की. उसके आजीवन कुलाधिपति हैं. यह आश्चर्यजनक है कि उन्होंने अध्ययन के लिए ब्रेल लिपि का सहारा नहीं लिया.
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा
यह उनकी जन्मजात प्रतिभा ही थी तो उन्होंने पंडित मुरलीधर मिश्रा के सानिध्य में पांच साल की उम्र में 15 दिनों में 700 श्लोकों के साथ भगवद्गीता रट ली. सात साल की उम्र तक वो पूरी रामचरितमानस कंठस्थ कर चुके थे. धीरे-धीरे उन्होंने वेदों, उपनिषदों और पुराणों को कंठस्थ कर लिया. अयोध्या के विद्वान ईश्वरदास महाराज ने गायत्री मंत्र के साथ गुरु दीक्षा ली. अल्पायु में ही वो रामकथा का पाठ करने लगे और कथावाचक के तौर पर उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई.उन्होंने जौनपुर के आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय के बाद वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. 1974 में उन्होंने स्नातक यानी शास्त्री की उपाधि ली और फिर आचार्य यानी परस्नातक भी संपूर्णानंद से किया.
संस्कृत अधिवेशन में गोल्ड मेडल
नई दिल्ली में जब 1974 में संस्कृत अधिवेशन हुआ तो न्याय, वेदांत, सांख्य में उनकी ओजपूर्ण वाणी सुनकर उन्हें पांच गोल्ड मेडल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिए. इंदिरा गांधी ने उनकी आंखों के इलाज के लिए अमेरिका भेजने का प्रस्ताव दिया, लेकिन गिरिधर मिश्र ने उन्हें अस्वीकार कर दिया. आचार्य के तौर पर भी उन्होंने 1976 में कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ ख्याति प्राप्त की. फिर 1981 में विधिवारिधि यानी पीएचडी और 1997 में वाचस्पति यानी डीलिट की उपाधि भी उन्हें शोध के बाद मिली.
आजीवन ब्रह्मचारी
गिरिधर मिश्रा ने 1976 में उनके मुख से करपात्री महाराज ने रामचरितमानस सुनकर उनसे वचन लिया. उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी और विवाह न करने का वचन लिया. साथ ही वैष्णव पंथ में दीक्षा लेने की सलाह दी. 19 नवंबर 1983 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामानंद संप्रदाय में श्री श्री 1008 रामचरणदास महाराज से दीक्षा पूर्ण हुई और वो गिरिधर मिश्र की जगह रामभद्रदास यानी रामभद्राचार्य कहलाए.
वेद-उपनिषद और पुराण
इसके बाद रामभद्राचार्य ने हिन्दी संस्कृत समेत तमाम भाषाओं में लिखे वेदों,उपनिषद और पुराणों का ज्ञान हासिल किया. फिर मेहनत और प्रतिभा के बलबूते 22 भाषाओं में विद्वता सीख हासिल कर ली. हिन्दी संस्कृत जैसे विषयों पर 80 धार्मिक ग्रंथों की रचना कर दी. वो देश दुनिया में प्रसिद्ध रामकथावाचक बने. रामभद्राचार्य ने चित्रकूट जिले में तुलसी पीठ की स्थापना की.
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के संस्थापक
रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरु में से एक हैं. इस पद पर वर्ष 1988 से स्थापित हैं. वो चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के संस्थापक भी हैं. विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति भी हैं. उन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल 4 महाकाव्य टीकाएं भी लिखी हैं.तुलसीदास पर शोधकार्य में वो सबसे बेहतरीन विशेषज्ञ माने जाते हैं.वर्ष 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था.
सुप्रीम कोर्ट में बयान
रामभद्राचार्य ने राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट अपना बयान भी दर्ज करवाया था. उन्होंने वेद शास्त्रों और पुराणों के हवाले से रामलला का सही जन्म स्थान बताया था. उन्होंने तुलसीदास द्वारा लिखी गई हनुमान चालीसा में कई गलतियां भी निकालीं.बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के गुरु तौर पर भी रामभद्राचार्य विख्यात हैं. मुलायम कांशीराम पर दिए विवादित बयान को लेकर भी वो सुर्खियों में रहे.