घर में शब्दकोश हो, तो सोने-सा और अन्य कोश भी हों, तो सोने पर सुहागा जैसा! शब्दों के अर्थ और वर्तनी जानने के लिए शब्दकोश ज़रूरी है, लेकिन आपको अपनी भाषा और लेखनी का परिष्कार करना है, शब्दों का सटीक प्रयोग सीखना है और उनके बारे में दिलचस्प जानकारियां चाहिए, तो अन्य कोश भी ख़रीदिए।
उदाहरण के लिए, लब्धप्रतिष्ठ भाषाविद डॉ. रमेशचंद्र महरोत्रा ने “मानक हिंदी के शुद्ध प्रयोग’ शीर्षक से छह खंड लिखे हैं। इनके अध्यायों में संबंधित और समानार्थक लगने वाले दो-दो शब्दों का रोचक विवेचन किया गया है। इसी तरह, आचार्य रामचंद्र वर्मा ने “शब्दार्थ-विचार कोश’ में समानार्थक शब्दों के अर्थ या आशय में समाई न्यूनाधिक भिन्नता को स्पष्ट किया है।
इसके एक अध्याय में वे गंध, बू, महक और वास का विश्लेषण करते हैं। आचार्य के अनुसार, गंध कटु, मधुर, रुक्ष, स्निग्ध और नव प्रकार की होती है, परंतु लोक में सुगंध और दुर्गंध नामक दो भेद ही प्रचलित हैं। वैसे, गंध शब्द का प्रयोग सुगंध और दुर्गंध दोनों अर्थों में होता है। फारसी शब्द बू भी अच्छे और बुरे के अर्थों में प्रयुक्त होता है। दूसरी तरफ़, महक मूलत: सुगंध या ख़ुशबू ही है, अत: “बुरी महक’ कहना ग़लत होगा। वास भी महक ही है, किंतु दोनों में बारीक अंतर है कि महक किसी पदार्थ में स्वयं होती है, जबकि वास को बाहर से लाकर युक्त भी किया जा सकता है, जैसे बालों को सुवासित करना।