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  • ध्यान कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है, हां शुरुआत में ध्यान लगाना थोड़ा मुश्किल ज़रूर लग सकता है।
  • इसी समस्या को दूर करने के लिए आध्यात्मिक गुरुओं ने कई सरल विधियां बताई हैं। इसी क्रम में सद्‌गुरु ने रोज़ सोने से पहले की जाने वाली एक ध्यान साधना सुझाई है, जो ध्यान को स्थिर करती है…

किसी ख़ास दिशा में ध्यान स्थिर रखने के लिए सबसे पहले उन सभी ग़लत और मिथ्या धारणाओं को ख़त्म करना होगा, जो हमारे भीतर बनी हुई हैं। इसका मतलब हुआ कि अपने हर विश्वास को उठाकर एक तरफ़ रख दीजिए। आप कहेंगे कि आपके विश्वास सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी हैं। ठीक है।

लोगों के बीच रहने के लिए कुछ लेन-देन करना पड़ता है, उसके लिए आपको कुछ चीज़ों पर विश्वास करना होता है, यहां तक तो ठीक है। लेकिन इसके अलावा अपनी हर धारणा को कम कीजिए। जब आप अपने विश्वास व धारणाओं को अलग रख देते हैं तो आपको ऐसा लगेगा कि आप भोंदू या निपट मूर्ख हैं। अगर आपको ऐसा लगता है तो बहुत अच्छा है। यह जानना बहुत अच्छा है कि आप एक निपट मूर्ख हैं। एक आत्म-ज्ञानी और एक मूर्ख में बस इतना ही अंतर होता है कि ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि वह अज्ञानी है, जबकि मूर्ख यह नहीं जानता कि वह अज्ञानी है। बस यही एक बड़ा अंतर है और यह ज़मीन-आसमान का अंतर है। लोगों की समस्या केवल इतनी है कि उनको पता ही नहीं होता कि वे किस जाल में फंसे हैं। अगर उन्हें पता होता तो क्या वे उसमें फंसे रहना चाहते? वे बिल्कुल वहां नहीं रहना चाहते।

इससे आसान क्या होगा!
बस इतना कीजिए कि आज रात जब आप सोने जाएं तो उससे पहले बिस्तर पर बैठकर मानसिक तौर पर हर वो चीज़ उठाकर एक तरफ़ रख दीजिए, जो आप नहीं हैं। अपने से जुड़ी हर चीज़, जैसे अपनी जाति, अपना धर्म, अपनी राष्ट्रीयता, अपना शरीर, अपना मन, अपना विचार, अपनी भावनाएं, अपनी सोच, अपना दर्शन, अपने भगवान, अपना शैतान, यानी हर चीज़ को ख़ुद से अलग करें और बस सो जाएं।


यह काम रोज़ कीजिए, आपको अनुभव हो जाएगा। सिर्फ़ सोना है, इससे आसान तरीक़ा मैं आपको नहीं दे सकता। बस आप ऐसे ही सो जाएं- जीवन के एक अंश के रूप में बस ऐसे ही सो जाइए, न एक स्त्री के रूप में न एक पुरुष के रूप में, न इस रूप में न उस रूप में, बस सामान्य रूप से सो जाइए। दरअसल, जब आप सोते हैं तो आप ऐसे ही होते हैं। मैं ये कहना चाहता हूं कि आप जब नींद में प्रवेश करें तब भी आप ऐसे ही रहें। इसके लिए आपको इतना करना है कि जो आपकी स्वाभाविक स्थिति नींद में होने वाली है, वही स्थिति आप सोने से केवल कुछ मिनट पहले तैयार कीजिए। आप देखेंगे कि इसमें कुछ मेहनत लगेगी, लेकिन आप इसे कीजिए। वैसे भी जब आप नींद में होते हैं तो आपके सोने का न कोई चाइनीज़ तरीक़ा होता है न अंग्रेज़ी तरीक़ा। आप अंग्रेज़ी या फ्रेंच में नहीं सोते हैं। जब आप सोते हैं तो ऐसे कि मानो आप कुछ हैं ही नहीं। आप उसी तरह से ‘कुछ हैं ही नहीं’ के अंदाज़ में नींद के क़रीब जाइए।

आप वास्तव में जो हैं
आपने जितनी भी पहचानें अपने ऊपर थोपी हुई हैं, उन सबका कोई मतलब नहीं है। आप बिस्तर पर जाने से पहले उन सबको एक तरफ़ रख दीजिए और फिर इस तरह सोने जाइए कि मानो कुछ है ही नहीं। कुछ विचार आते रहेंगे, उन्हें अनदेखा कर दीजिए, वैसे भी वे आपके नहीं हैं। सिर्फ़ लेट जाइए। सिर्फ़ इतना करने की ज़रूरत है कि आपको अपना ध्यान ‘जो आपने अब तक इकट्‌ठा किया हुआ है’ उससे हटाकर ‘जो आप वास्तव में हैं’ उस पर लगाना है। यही आपको सही दिशा देगा। इसके लिए आपको स्वर्ग की ओर देखने की ज़रूरत नहीं है।

ध्यान का महत्व और उसकी उपयोगिता
सद‌‌गुरु के शब्दों में…

— ध्यान करने से जब आपको यह एहसास होता है कि आपकी कई सारी सीमाएं हैं, और वो सब आपकी बनाई हुई हैं, तभी आपके अंदर उन्हें तोड़ने की चाहत पैदा होगी।
— अगर आप अपने शरीर, दिमाग़, ऊर्जा और भावनाओं को एक ख़ास स्तर तक परिपक्व करते हैं, ध्यान अपने आप फलित होगा।
— ध्यान का अर्थ है शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना। क्योंकि जब तक यहां आपका अस्तित्व केवल शरीर और मन के रूप में है, पीड़ा तो होगी ही, इससे बचा नहीं जा सकता।
— ध्यान का अर्थ है, अपने भीतर नए आयाम जागृत करना।
— ध्यान कोई कार्य नहीं, एक गुण है।
— ध्यान अपने अस्तित्व की ख़ूबसूरती को जानने का एक तरीक़ा है। जीवन का मूल उद्देश्य खिलने की उस सर्वोच्च अवस्था तक पहुंचना है, जहां तक पहुंचना संभव है। ध्यान खिलने के लिए खाद्य पदार्थ है।
— असल में ध्यान का अर्थ है, अनुभव के स्तर पर यह एहसास होना कि आप कोई अलग इकाई नहीं हैं- आप एक ब्रह्मांड हैं।
— ध्यान का अर्थ यह नहीं है कि आपको अपने जीवन में हर क्षण मुस्कराते रहना होगा, बल्कि यह सीखना है कि आपकी हड्डियां भी मुस्कुराने लगें।
ध्यान का अर्थ है…
पूरी तरह से बोध में स्थित होना। पूरी तरह से मुक्त होने का यह अकेला मार्ग है।

isha.sadhguru.org से

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