नोएडा में रहने वाले आशीष आनंद फैशन डिजाइनर बनना चाहते थे। नसीब ने उन्हें फ्लाइट अटेंडेंट बना दिया। पर मन में सपना पलता रहा। जब फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी से रिटायर हुए तो उन्होंने दिल्ली के बाहरी इलाके में कपड़े की दुकान खोली। इसमें उन्होंने कस्टम-डिजाइन सूट, शर्ट और पैंट बेचना शुरू किया। फरवरी 2020 में अपने दुकान के उद्घाटन के वक्त आशीष भूल गए थे कि उनकी जिंदगी भर की करीब साढ़े तीन लाख रुपए की सेविंग खर्च हो गई है, यहां तक कि ससुराल से उधार भी मांगना पड़ा था। वे उत्साहित से थे कि अब उनके दिन फिर जाएंगे और मिडिल क्लास की रोज-रोज की चुनौतियों से निकल कर अपर मिडिल क्लास की जिंदगी जीने लगेंगे।
अभी दुकान को खुले ठीक से महीनेभर हुए थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। तब आशीष के पास दूसरे महीने के रेंट देने के पैसे भी नहीं बचे थे। उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी। अब आशीष, उनकी पत्नी और दो बच्चे भारत के उन करोड़ों लोगों में एक हैं जो कोरोना के कारण मिडिल क्लास से नीचे जाकर गरीबी की जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं।
38 साल के आशीष अब अपने ससुराल वालों पर निर्भर हैं। कभी शाम को उनके खाने की टेबल पर चिकन और अंडे होते थे। अब कभी दाल-चावल तो कभी खिचड़ी होती है। वे कहते हैं, ‘आजकल बच्चे कभी-कभी भूखे सो जाते हैं। मेरे पास अब बिल्कुल पैसे नहीं हैं। मैं बच्चों को खाना कहां से दूं।’
3 करोड़ 20 लाख मिडिल क्लास लोग हुए गरीब
अब कोरोना की दूसरी लहर ने भारत के मिडिल क्लास परिवारों को तोड़कर रख दिया है। प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के अनुसार पहली लहर ने ही तीन करोड़ 20 लाख मिडिल क्लास लोगों को गरीबी की ओर ढकेल दिया था। यह केवल भारत के साथ ही नहीं हुआ, दुनिया में करीब पांच करोड़ 40 लाख मिडिल क्लास लोग गरीबी की कगार पर खड़े हैं।
बड़ी असमानता की ओर बढ़ गया है भारत
मिडिल क्लास पर गिरी कोरोना की गाज पर मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय की इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर जयंती घोष कहती हैं, ‘यह हर तरह से बेहद बुरी खबर है। इससे हमारी ग्रोथ चौतरफा झटका लगा है। अब पहले से कहीं ज्यादा असमानता होगी।’
पहले फेज में गई थीं 12 करोड़ नौकरियां, दूसरी लहर रूह कंपा देने वाली
सीएमआई के आंकड़े के मुताबिक संगठित और असंगठित क्षेत्र मिलाकर कोरोना की पहली लहर में करीब 12 करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे। इसमें करीब दो करोड़ नौकरीपेशा और बाकी मजदूर थे। अब दूसरी लहर में 17 अप्रैल को सवा दो लाख से ज्यादा नए मामले आए। कई राज्यों के प्रमुख शहरों को लॉकडाउन कर दिया गया है और प्रवासी मजदूरों के लौटने के वीडियो मीडिया-सोशल मीडिया में तैरने लगे हैं। इस बार की हालत पहले से ज्यादा खराब बताई जा रही है।
लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ी, बोझ मिडिल क्लास पर
पहली लहर में अप्रैल-जून 2020 के दौरान देश की विकास दर 23.9% नीचे चली गई थी। इसकी भरपाई मिडिल क्लास की जेब से की जा रही है। मार्च 2020 में GST कलेक्शन करीब 97 हजार करोड़ था, जो मार्च 2021 में 26% बढ़कर 1.23 लाख करोड़ हो गया। क्योंकि एफएमसीजी कंपनियों ने रोजमर्रा के सामान के भाव बढ़ा दिए।
31 मार्च 2020 को पेट्रोल की औसत कीमत 71.75 रुपए प्रति लीटर और डीजल की 64.34 रुपए प्रति लीटर थी। जबकि 31 मार्च 2021 को पेट्रोल 90.82 रुपए और डीजल 81.14 रुपए हो गया। एमपी, राजस्थान में 100 के पार है। सरकार एक्साइज ड्यूटी कम करने को तैयार नहीं।
मार्च में बिजली बिल से होने वाली कमाई एक साल पहले के मार्च से 22.8% ज्यादा है। असल में, कई राज्य सरकारों ने बिजली पर दी जाने वाली अलग-अलग छूट बंद कर दी है।
अब अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार नहीं, वैक्सीनेशन रेट 9% से भी कम
पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन समेत कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अभी अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार कम हैं। क्योंकि भारत में कोविड वैक्सीन लगाने की दर 9% से भी कम है। यानी एक दिन में 100 में से महज 9 लोग ही टीका लगवा पा रहे हैं। इस गति से भारत में हार्ड-इम्यूनिटी विकसित होने में काफी वक्त लगेगा। दूसरी लहर के प्रकोप की बड़ी वजह यही है। जब तक करोना पांव पसारता रहेगा, अर्थव्यवस्था पटरी से उतरती जाएगी। हालांकि सरकार का दावा है कि वैक्सीन लगने के साथ फिर से अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ लेगी।
लोगों के पास अब नहीं हैं रेस्टोरेंट जाने और बस पकड़ने के पैसे
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के अनुसार भारत सरकार के अर्थव्यवस्स्था के दोबारा रफ्तार पकड़ने का दावा मुंबई में रहने वाली निकिता जगद के लिए बहुत दूर है। 49 साल की निकिता की आठ महीने पहले नौकरी चली गई थी। अब वो अपने दोस्तों के साथ किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने नहीं जातीं, यहां तक कि वो बस में यात्रा तब करती हैं जब उन्हें कोई जॉब इंटरव्यू देने जाना होता है।
निकिता बताती हैं, ‘मैं कभी-कभी खुद को बाथरूम में बंद कर लेती हूं। ताकि मेरी 71 साल की मां मुझे रोते हुए न सुन ले।’ पिछले सप्ताह एयरलाइंस को हाउसकीपिंग सेवा देने वाली एक कंपनी में निकिता को मैनेजर की नौकरी मिली। यहां उन्हें 30 हजार रुपए से भी कम सैलरी मिल रही है। यह उनकी 8 महीने पहले की सैलरी के आधे से भी कम थी। अभी उनकी नौकरी शुरू हुई थी कि मुंबई में दूसरी लहर से बचने के लिए छह सप्ताह का लॉकडाउन लगा दिया गया। वे बताती हैं, ‘अगर ये दूसरी नौकरी चली गई तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। मां को देखने वाली मैं अकेली हूं। अगर उन्हें कुछ हुआ तो उन्हें अस्पताल में भर्ती करने के भी पैसे नहीं हैं।’
Credit : bhasker.com