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हंसी तो हम सबको आती है. कभी छोटी बात पर तो कभी बहुत बड़ी बात पर. तो कभी कभी तो बिना किसी बात पर. लेकिन आप जानते हैं कि हंसी जिसे हम अक्सर अनदेखा करते जाते हैं, उसके पीछे का विज्ञान क्या है. यही नहीं, उसके पीछे का एक सामाजिक संदर्भ भी है. तो हंसते हंसते पढ़िए यह लेख और इसके बाद हंसी को ज़रा ‘गंभीरता’ से लीजिए..

अगर आप खड़ूस नहीं हैं तो फिर आप हंसने में कंजूसी तो नहीं बरतते होंगे. बिना बात की हंसी, किसी बात पर हंसी, चुटकुलों पर हंसी, किसी हालात को देखकर आने वाली हंसी. यह इंसान से जुड़ी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके बारे में हम कम ही सोचते हैं. शायद इसलिए क्योंकि आदत अनुसार हमें नकारात्मक भावनाएं जैसे दुख, दर्द, उदासी की गहराई में जाने से फुर्सत ही नहीं मिलती. एक शोध के मुताबिक एक 10 मिनट की बातचीत में हम सात बार हंसते हैं. यह अलग बात है कि हमें इस बात का एहसास नहीं होता.

एक और दिलचस्प बात यह भी है कि हम चुटकुले या मज़ाक पर उतना नहीं हंसते जितना किसी से मिलने पर हंसते हैं. साइंस यह भी कहती है कि हम तब ज्यादा हंसते हैं जब किसी दूसरे व्यक्ति से मुलाकात करते हैं, चुटकुलों पर तो कम ही हंसी आती है (और अब जब स्टैंड अप कॉमेडियन की बाढ़ आ गई है तब एक आदमी कितने जोक पर हंसे). हंसी सामाजिक बंधन को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक इमोशन है.

हंसने का अलग अलग ढंग हो सकता है, कोई जोर से हंसता है, कोई धीरे से लेकिन हंसने की प्रक्रिया एक ही होती है. दरअसल हमारी छाती की मांसपेशियां, हाई प्रेशर के दौरान पसलियों से हवा बाहर की ओर छोड़ती हैं. हंसी आने पर यह होता है और उसी दौरान अलग अलग आवाज़ पैदा होती है. दिलचस्प बात यह है कि बोलने के दौरान हमारे मुंह के अंदर जीभ, दांत, जबड़ा हर एक का इस्तेमाल होता है लेकिन हंसने के वक्त सिर्फ और सिर्फ पसलियां काम करती हैं. आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि हंसते हुए आपकी जीभ या दांत कुछ काम नहीं कर रहे होते हैं. बस अंदर से छिड़ी एक गुदगुदी हंसी में बदलती जाती है.

हंसी एक तरीका है जिसमें आप बगैर बोले अपनी भावना का इज़हार कर पाते हैं. रिसर्च के मुताबिक हंसी की देखरेख हमारे दिमाग का वो पुराना हिस्सा करता है जो तब से है जब इंसान ने बोलना भी नहीं सीखा था. शायद यही वजह है कि हंसते वक्त हमारे अंदर से जो आवाज़ निकलती है वह काफी कुछ जानवरों से मेल खाती है. यही वजह है कि मूक व्यक्ति भी हंस या रो सकता है. या किसी दुर्घटना में आवाज़ खो देने वाला व्यक्ति भी हंसना नहीं भूलता. क्योंकि उसके दिमाग का वो हिस्सा कमजोर होता है जो उसे बोलने के लायक बनाता है. पुराना हिस्सा बरकरार रहता है.

वैसे हंसने सिर्फ इंसानों तक ही सीमित नहीं है. भावना व्यक्त करने का यह तरीका इंसानों के अलावा कुछ और स्तनपायी जीव भी अपनाते हैं. चिम्पान्ज़ी, गोरिल्ला, ओरंगुटान भी हंसने में यकीन रखते हैं. कहते तो यह भी हैं कि चूहे भी हंसते हैं. अलग अलग शोध से शायद और ऐसे जीवों के बारे में पता चल सके जिनके समूह में हंसा जाता है. दिलचस्प यह है कि इंसान हो या चिम्पान्ज़ी गुदगुदी और मस्ती हंसी की एक वजह है. हंसना इस बात का संकेत है कि हम आनंद में हैं, हमें अच्छा लग रहा है. तो जिन्हें लगता है कि किसी दूसरे से संपर्क करने में भाषा आड़े आ जाती है वो ज़रा किसी दूसरी भाषा के व्यक्ति के सामने थोड़ा हंसकर देख ले. देखिए कैसे बात बनती है.

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