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मुख्य बात शुरू करने से पहले मैं खान सर पर टिप्पणी करना चाहता हूँ. खान सर एक ऊर्जावान, मेहनती इन्सान हैं. उनका संकल्प मजबूत है और इस कारण वह आज सब जगह चर्चा में हैं. उनके पढ़ाने का ढंग रोचक है. लोग जिज्ञासा से उन्हें सुनते हैं तो इसका बड़ा कारण उनका स्वभाव है. खान सर उस भाषा, उस उदाहरण से पढ़ाते हैं, जिनसे लोग कनेक्ट कर पाते हैं.

खान सर के विडियो में कोई हवाबाज़ी नहीं होती. मगर झूठ नहीं होता. एक सुनियोजित रिसर्च के बाद कंटेंट तैयार होता है, जिसमें ज्ञान होता है अफवाह नहीं. खान सर का कंटेंट सरल,प्रमाणिक रहता है. यही उनकी ख़ास बात है. मगर खान सर ईश्वर या फ़रिश्ता नहीं हैं. उनके भीतर भी कमियां हैं. वह जिस परिवेश में पले बढ़े हैं, जिस जगह आज पढ़ा रहे हैं, वहां कुछ दुर्गुण जन्म से ही चिपक जाते हैं.

चमड़ी का रंग, देह का आकार, प्रजनन अंगों की क्षमता इन इलाकों और लोगों में बहुत मायने रखती है. तभी यहाँ गोरा होने की क्रीम, पतला होने की गोली, सुडौल शरीर के लिए पाउडर, लिंग वृद्धि के लिए स्प्रे धड़ल्ले से बनता और बिकता है. यहाँ गोरा रंग, सुडौल शरीर, सेक्स पॉवर कांफिडेंस के आधार हैं.

ऐसे समाज में अगर पैदा हुए, पले बढ़े खान सर अपने विडियो में रंग और शरीर के आकार पर भद्दी छींटाकसी करते हैं तो मैं हैरान नहीं होता. जिस तरह वह लड़कों को बताते हैं कि सरकारी नौकरी से सुन्दर लड़की मिलेगी वरना बदसूरत लड़की मिलेगी, यह सुन्दरता, बदसूरती और नौकरी के बदले सुन्दर बीवी का व्यापार भी भद्दी बात है, जो एक शिक्षक को शोभा नहीं देती. लड़कियों को बेवफा बताना, इमरान खान को रखैल कहना वह बातें हैं, जो खान सर को बतौर शिक्षक कमजोर करती हैं.

आप किसी लड़की के मन से पूछिए, जो गोरी, छरहरी न हो, कि उसे खान सर जैसे लोगों की सुन्दरता की परिभाषा सुनकर कितनी पीड़ा होती होगी. मैं फिर कहता हूँ कि खान सर आदमी हैं, फरिश्ता नहीं इसलिए कमियां संभव हैं. मगर ऐसी बातें कहना, जब करोडो लोग आपको सुनते और फ़ॉलो करते हैं, ठीक नहीं. उन्हें बेहतर उदाहरण चुनने चाहिए और भाषा की मर्यादा बनाए रखनी चाहिए. मैं जानता हूँ कि चेतना और संवेदना का विकास भारतियों में रुक सा गया है मगर प्रयास करना चाहिए.

अब आते हैं खान सर के विवादित मुद्दे पर. पहले मुद्दे की जड़ पर बात करते हैं. फ़्रांस में पैगम्बर मुहम्मद साहब का किसी ने कार्टून बनाया. कट्टर पंथियों ने उसका गला काट दिया. इसके विरोध में फ़्रांस के राष्ट्रपति ने वह विवादित कार्टून देश भर में फैला दिया. इससे मुस्लिम जगत के लोग भड़क उठे. पाकिस्तान में फ़्रांस के सामान के बहिष्कार की मुहीम चली. इसी कड़ी में फ़्रांस के राजदूत को वापस भेजने की मांग उठी. इसके लिए जलसे हुए, धरने हुए, सडक पर तमाशा किया भीड़ में. इस भीड़ में छोटे छोटे अबोध बच्चे शामिल थे. उनका हाथ में हिंसक नारे थे, जो फ़्रांस के प्रति घृणा दिखा रहे थे. जो धार्मिक उन्माद की चरम सीमा दिखा रहे थे.

खान सर ने पाकिस्तान में हो रहे इस विरोध प्रदर्शन की जमकर और खुलकर आलोचना की. उन्होंने कहा कि जिन बच्चों को राजदूत का अर्थ नहीं मालूम, जिनको यह नहीं मालूम कि फ़्रांस दुनिया के किस हिस्से में हैं, वह फ़्रांस मुर्दाबाद और उसके राजदूत के खिलाफ नफरत ज़ाहिर कर रहे थे. क्या यह उचित है कि जिस उम्र में बच्चों को पढना, सीखना, खेलना चाहिए, वहां ऐसी भीड़ में शामिल होकर इनके जेहन में नफरत, कट्टर पंथ, धार्मिक उन्माद भरा जा रहा है.

यही कारण है कि पाकिस्तान आज भी दुनिया में पिछड़ा हुआ है और यह आतंकिस्तान बन गया है. यह बच्चे इसी तरह के जलसे में आते रहे तो कल को कहीं बम ब्लास्ट करेंगे या पंचर की दुकान पर काम करेंगे या मीट काटेंगे. खान सर ने यह बात कही कि चूंकि पाकिस्तान में रहने वाले लोग अनपढ़ हैं, उन्हें परिवार नियोजन से कोई मतलब नहीं इसलिए उनकी 10 से लेकर 15 संताने होती हैं. अब इतनी भीड़ घर में होगी तो उसके लिए कोई योजना नहीं बन सकती. इसका नतीजा यह है कि बच्चे धार्मिक उन्माद, जहालत, कट्टर पंथ का शिकार होते रहेंगे.अब समझदारी से देखें तो खान सर की मंशा पवित्र है.

वह पाकिस्तान के बच्चों को, भविष्य को जहालत, हिंसा, आतंकी मानसिकता से दूर रखना चाहते हैं.यह बात खान सर ने कही. बात पाकिस्तान के लोगों के लिए कही. मगर इससे भारत के लोग पिनक गए. पिनकने की दो वजहें थीं. पहली वजह यह कि दुनिया भर के मुस्लिम खुद को एक मानते हैं. इसलिए कोई मुस्लिम किसी भी देश में हो, उसकी आलोचना हर मुस्लिम को अपनी व्यक्तिगत आलोचना लगती है. इसलिए पाकिस्तान के मुस्लिम का साथ देना, भारत के इन मुस्लिम लोगों को अपना धर्म लगता है. पिनकने की दूसरी वजह यह है कि खान सर ने चाहे यह बात पाकिस्तान के लिए कही मगर भारत के मुस्लिम इस बात से कनेक्ट कर गए. अब जहाँ आग होती है, धुआं वहीँ उठता है. यानी चोर की दाढ़ी में तिनका. देश की शच्चर कमिटी, कई मीडिया रिपोर्ट और जनगणना यह चीख चीख कर बता चुकी है कि भारत के मुसलमान की हालत दलितों से भी बदतर है. मुस्लिमों में स्कुल की पढ़ाई छोड़ने की दर बहुत ज्यादा है. मुस्लिमों का राजनीति में दखल, पार्लियामेंट में प्रतिनिधित्व बहुत कम है. मुस्लिमों का प्रशासनिक सेवा, मेडिकल सेवा, वकालत आदि में दखल बहुत कम है.

जबकि सिख, ईसाई जनसख्या में कम होने के बावजूद कहीं पढ़े, लिखे सम्पन्न हैं. फिर क्या कारण है कि भारत का मुस्लिम नाई, दर्जी, कबाड़ी, कसाई बनकर जी रहा है. वजह है धार्मिक उन्माद, नई सोच का हमेशा अंधों की तरह बहिष्कार. किसी ने उनके हाथ नहीं पकड़े और तरक्की छीन ली. आपसी फिरका परस्ती और कट्टर पंथ में ऐसी कोढ़ लगी कि यह कौम आगे नहीं बढ़ सकी. इस हिसाब से बीस बच्चे और मीट काटने, पंचर ठीक करने की बात चाहे पाकिस्तान के लिए कही गई मगर इससे रिलेट भारत का मुस्लिम भी कर रहा था. मैं साफ़ कहता हूँ कि सुधार के लिए एक तरीका होना चाहिए. खान सर के शब्द सच थे, कटु सत्य और यह घाव भी कर गए हैं. मगर इसके लिए इतनी नफरत पैदा करना जायज़ नहीं है. सोशल मीडिया पर यही आहत कट्टर पंथी लाठी लेकर खान सर को दौड़ा रहे हैं.

इन्हें खान सर बीजेपी एजेंट, आरएसएस के दलाल और हिंदूवादी लग रहे हैं. लोग इन्हें अमित सिंह बता रहे हैं. खान सर भी आहत हैं, यूट्यूब छोड़ने की बात कर रहे हैं. वह दुखी हैं इन आरोपों और घृणा है. एक आदमी जो करोड़ों लोगों को शिक्षित कर रहा है, एक आदमी जो हजारों लोगों को मुफ्त पढ़ा रहा है, जो लाखों युवाओं को नौकरी की उम्मीद दे रहा है, जो गरीबों का स्तर सुधारना चाहता है, उसकी कही सच्ची मगर चुभने वाली बात से, लोग उसी ख़त्म कर देना चाहते हैं. यह बात दुखी करने वाली तो है मगर हैरान करने वाली नहीं है. मुस्लिमों के इतिहास को देखें तो यह रिवायत रही है. देश का विभाजन यूपी, बिहार और बंगाल के मुस्लिमों के चलते हुआ.

यही मुस्लिम थे, जिन्हें मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद और खान गफ्फार की जगह सूअर खाने वाला जाहिल मोहम्मद अली जिन्ना रास आया. पैगम्बर मुहम्मद के नवासे शब्बीर इमाम हुसैन और उनके परिवार को किसने कतल किया, किसी हिन्दू, यहूदी या ईसाई ने या उन्होंने जिनके बाप दादा ने रसूल की सरपरस्ती में कलमा पढ़ा था. आज सीरिया, यमन, बगदाद, मिस्त्र में जो सिया और सुन्नी एक दुसरे का खून पी रहे हैं, जो फिरका परस्ती मुस्लिमों में है, वह इसी कारण है कि यहाँ नई सोच का स्वागत सहजता से नहीं होता. कार्टून बनाने पर सीधा गर्दन काटना शान समझा जाता है.

अब ऐसे लोगों को खान सर की अच्छाई से क्या लेना और क्या देना. उन्हें यह याद रहता है कि हुजुर की शान में गुस्ताखी न हो और चार बीवी और चौबीस बच्चों के बावजूद, कोई हम पर तनकीद न करे. यकीं मानिए अगर खान सर कट्टर पंथी होते, अगर फिलिस्तीन के हक़ में खुले रूप में आते, अगर फ्रांस को माँ बहन की गालियाँ देते तो यही लोग जो खान सर मुर्दाबाद कह रहे हैं, यह खान सर का माथा चूम लेते.

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