मेरे दोस्त चिंतन का अभी-अभी छह महीनों के लिये रसायन-चिकित्सा शुरु हुआ है. इस चिकित्सा प्रक्रिया के शुरु होने से पहले ही आप उसे उसके ध्यान के लिए सुंदर संदेश भेज चुके हैं.
केवल एक ध्यानी ही इस प्रक्रिया से गुजरने में सक्षम हो सकता है क्योंकि यह उसके लिये आसान होता है. वह इस प्रक्रिया से हंसते-गाते गुजर सकता है क्योंकि वह जानता है कि आग उसे नहीं जला सकती और ना ही मृत्यु उसका विनाश कर सकती है. कोई भी तलवार उसे नहीं काट सकती है. वह अविनाशी है. एक बार अगर अनंत जीवन की झलक मिल जाये तो किसी भी चीज से किसी भी जीवन को कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है. यह एक से दूसरे तक विचरण कर सकता है लेकिन मृत्यु इसपर विजय नहीं पा सकती है. यह जीवन केवल घर बदलता रहता है. जो ध्यानी नहीं हैं, उनके लिये मृत्यु अंत है लेकिन ध्यानी के लिए मृत्यु एक शुरुआत है जिसमें एक पुराना मन एक विनाशी शरीर को त्याग देती है. हर मौत एक पुनरूत्थान है. लेकिन अगर आप यह नहीं जानते हैं तो आप पुनरूत्थान के सौंदर्य का अनुभव किये बिना ही मर जायेंगें. लेकिन अगर आप इस बात के प्रति सचेत हैं तो आप समझ सकेंगें कि केवल मृत्यु ही एक नये जीवन का दरवाजा है. लेकिन चेतन अवस्था में मरने के लिये चेतनात्मक रूप से जीना भी होगा.
एक लंबी, आध्यात्मिक और चेतनात्मक जीवन के बिना आपका चेतनात्मक रूप से मरना संभव नहीं हो सकता है. केवल एक सचेत जीवन ही एक सचेत मृत्यु के साथ पुरस्कृत की जा सकती है. यह एक प्रकार का ईनाम है लेकिन केवल एक जागरुक इंसान के लिये. एक अचेतनीय मनुष्य के लिये यह उसके प्रयासों, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं का अंत है. उसके लिये आगे केवल अंधेरा है ना कि रौशनी या उम्मीद. मृत्यु बस उसके पूरे भविष्य को उससे दूर कर देती है. स्वाभाविक रूप से एक अचेत व्यक्ति इस बात से डरा और सहमा रहता है कि जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं, वैसे-वैसे मृत्यु उसके पास आ रही है. जन्म के बाद केवल एक ही चीज है जो तय रहती है और वह है मृत्यु. इसके अलावा हर चीज अनिश्चित और घटनास्वरूप होती है. केवल मृत्यु ही आकस्मित नहीं होती बल्कि यह पूर्ण रूप से तय होती है. इससे बचने का या इसे चकमा देने का कोई रास्ता नहीं है. यह आपको सही समय में और सही जगह पर अपने आवेश में ले ही लेगी. बर्ट्रेंड रसेल ने कहा है कि अगर इस संसार में मृत्यु नहीं होता तो धर्म भी नहीं होता. अगर मृत्यु का भय नहीं होता तो किसे ध्यान करने की चिंता होती? अगर मृत्यु नहीं होती तो कोई भी इस रहस्य को जानने की कोशिश नहीं करता कि जीवन क्या है? हर कोई इस सांसारिक और लौकिक जीवन से जुड़ा रहता और कोई भी अपने भीतर झांकने की कोशिश नहीं करता. फिर कोई गौतम बुद्ध नहीं बन पाता.
इसलिये मौत केवल एक दैवीय प्रकोप नहीं है बल्कि यह एक छिपा हुआ आशीर्वाद है. अगर आप इस बात को समझते हैं कि जन्म के बाद मृत्यु हर पल आपके करीब आ रही है तो आप तुच्छ बातों में अपना समय नहीं गवाएंगें. बल्कि आपकी प्राथमिकता मृत्यु से पहले जीवन के बारे में जानने के बारे में होंगी. आप यह जानने का प्रयास करेंगें कि आपमें कौन रहता है? बल क्या है? हर बुद्धिमान नर और नारी की यही प्राथमिकता होगी. खुद को जानने के बाद ही किसी और चीज का महत्व होगा. एक बार जब आप खुद को जान जाते हैं तो वहां फिर मृत्यु का कोई भय नहीं होता. मृत्यु केवल आपके अज्ञानता में ही थी.
आपके आध्यात्मिक चेतना में मृत्यु बिल्कुल वैसे ही गायब हो जाती है जैसे रौशनी की आते ही अंधेरा मिट जाता है. ध्यान आपके अंदर प्रकाश लाता है और उसके बाद मृत्यु केवल एक कल्पना लगती है. मृत्यु का अस्तित्व केवल बाहर प्रतीत होता है जब किसी की मौत हो रही हो. मन के अंदर कोई भी नहीं मरता और केवल यही जीवन का स्रोत है. चिंतन अपने आने वाली मृत्यु का आनंदपूर्वक और शांतिमय रूप से इंतजार कर रहा है. उसकी मृत्यु सचेत अवस्था में होगी. वह इस बात संकेत दे रहा है कि मृत्यु उसे अचेत नहीं कर सकती. उसे अपनी चेतना को बनाए रखना होगा और इस प्रकार जब उसकी मृत्यु होगी तब भी हंस रहा होगा क्योंकि यह संपूर्ण संसार जिसमें हम रह रहें हैं, यह केवल एक भ्रम है.
संपादकीय द्वारा ओशो