कई दिनों से हरिद्वार कुंभ पर बौद्धिकों के विचार पढ़ रहा हूँ। खासकर हिन्दू बौद्धिकों के विचार। जिनका कहना है, कुंभ आयोजन पहले ही रद्द कर दिया जाना चाहिए था। हैरानी होती है, ऐसे भी हिन्दू है? ये कौन हिन्दू हैं जो इतना एकांतिक सोच सकते हैं ?जो बौद्धिक कुंभ को केवल आयोजन या धर्म सम्मेलन समझते हैं, उनसे मेरी कोई शिकायत नहीं है। क्योंकि उनकी दृष्टि ही ऐसी है।एक होता है कुंभ नहाना। दूसरा होता है कुंभ को जीना। यदि आपने कुंभ को जिया है तो समझ सकते हैं, यह करोड़ों लोगों के समागम से लाखों लोगों, परिवारों की जीविका है। आपको याद है, कुछ दिन पहले मथुरा के एक तीर्थ पुरोहित की कैंसरग्रस्त मां की चिकित्सा के लिए दान मांगा था।
पिछले लॉकडाउन से तीर्थ पुरोहितों की हालत बहुत खराब है। जजमान पहुंच ही नहीं रहे। अब जजमान नहीं पहुंच रहे हैं तो केवल तीर्थ पुरोहित ही नहीं, तीर्थ नगरियों में श्रद्धालुओं से जीविका प्राप्त करने वाला हर व्यक्ति हताश है। क्या फूल वाला! क्या विश्रामगृह तो क्या रिक्शे वाला। और जब यह बात कह रहा हूँ तो याद रखें, हमारे तीर्थस्थलों, तीर्थ नगरों से मुसलमान भी बड़ी संख्या में रोजगार पा रहे हैं। सार्वजनिक मंचों पर कबूल भले ना करें। उन्हें अल्लाह नहीं, श्रीराम और श्रीकृष्ण भक्त जीविका दे रहे हैं।

एक अध्ययन बताता है, पर्यटन उद्योग में एक पर्यटक के घर से चलने से वापसी तक, पूरी श्रृंखला में 17 तरह के व्यवसाय को रोजगार मिलता है। निसन्देह, एक श्रद्धालु हिन्दू पर्यटक तो इस संख्या से कहीं ज्यादा संख्या में व्यवसाय को रोजगार देता है। अब इस सत्य को पूर्ण कुंभ पर लागू कीजिए। कुंभ नगरी में घर से चलने से लेकर पहुंचने, स्नान, पूजापाठ, कुंभ मार्गों पर कौड़ी, शंख, पुष्प, रुद्राक्ष, गमछे, मूर्ति, जड़ी-बूटी, नीबू वाली चाय, सब्जी-भाजी, लोटा बाल्टी …हेन-तेन तमाम खरीदारी। दान दक्षिणा। फिर इन व्यवसाय से जुड़े उत्पादक चेन पर सोचिए..शंख, कौड़ी को सुदूर समंदर से निकालने वाले मछुवारों के परिवारों तक। या उससे भी पीछे।
जंगल से जड़ी-बूटी निकालने वाले। लोटा बाल्टी बनाने वाले। गिनाता जाऊं, तो भी गिन नहीं पाएंगे। महानगरों में लॉक डाउन हुआ। मल्टीप्लेक्स, रेस्टोरेंट चेन, काफी हाउस, शॉपिंग मॉल्स..यानी संगठित कारोबारियों ने हाहाकार मचा दिया। रोज खबरें चलने लगी, फलां सेक्टर में इतने बेरोजगार हुए! फलां सेक्टर मंदी की गिरफ्त में। मीडिया में तुर्रमखां बैठ गुर्राने लगें। पत्रकार फुफकार मारने लगे। सोशल मीडिया पर क्या हिन्दू? क्या मुसलमान मचमचाना शुरू कर दिए। लेकिन मजाल है, एक्को भकुए ने सोशल मीडिया, मीडिया पर कुंभ से करोड़ों भक्तों से जुड़े लाखों परिवारों की जीविका पर कुछ बोला हो। चूँ भी किया? और तो और, विचार इस बात पर भी नहीं हुआ कि करोड़ों लोगों के जुटान ना होने से कौन सी इकॉनमी धराशाई होगी ? उस इकॉनमी की परिभाषा क्या है ?
और इस इकॉनमी के बैठने से धराशाई होने वाले करोड़ों परिवार कौन हैं ? इनकी पहचान क्या है? या होगी ? इनके एजंडे आखिर कौन उठाएगा ? अपाहिज बौद्धिक तय करेंगे ? जो खुद धरती पर बोझ हैं ?आप सक्षम हैं! आप संगठित हैं! आप बौद्धिक को प्रभावित कर सकते हैं! या खुद ही बौद्धिक हैं? आप मीडिया नैरेटिव बदलने की हैसियत रखते हैं! तो आपकी आवाज को देश की आवाज मान लिया जाए ? हम शांत है, सबको लेकर चलने में आस्था रखते हैं तो हम खारिज ?जिन भी श्रद्धालुओं ने हरिद्वार कुंभ की यात्रा की, उन सभी को मेरी तरफ से प्रणाम। आप हैं, तभी भारत है। सनातन है। हिंदुत्व है। मानवता है।
जीवन की सार्थकता है। ..आखिर में, ये जो चंद नादान टाटा जी, अंबानी जी की दानशीलता के कसीदे पढ़ते हैं ना? इन जड़बुद्धि वालों को मुझे हिन्दू कहते भी संकोच होता है। शिक्षित तो अपन इन जैसों को मानते ही नहीं। टाटा, अंबानी से करोड़ों गुना लोगों का जीवन पता है कौन चला रहे हैं…? वही, जिन्हें बौद्धिक लोग “अराजकता पैदा करने वाली भीड़” बोल रहे हैं। सहस्रों वर्षों से यही “अराजक भीड़” संसार की इकॉनमी चला रही है। परहित कर रही है। फिर यही “अराजक” दो मुट्ठी राख बनकर गंगा मैया में समाते जा रहे है। इन्हें ना नाम की आकांक्षा है ना सुयश का लोभ। इस भीड़ का एक ही परिचय है…सनातन! और दूसरा कोई परिचय हो भी नहीं सकता। न किसी अन्य परिचय में इतनी व्यापक क्षमता है।
